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पढ़े राजनीति का 'कबीर' महामना रामस्वरूप वर्मा जी के बारे में : आज उनकी जयंती के सुअवसर पर उन्हें नमन


राजनीति के 'कबीर' महामना रामस्वरूप वर्मा जी: एक सामाजिक योद्धा,विचारक और कुशल राजनेता



रामस्वरूप वर्मा (22 अगस्त 1923 -19अगस्त 1998 ) उत्तर प्रदेश जिला कानपुर देहात के गौरी करन गाँव में पिता वंशगोपाल, माता सुखिया के परिवार में जन्मे, जो एक साधारण कुर्मी किसान परिवार था। उन्होंने उस जमाने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. और आगरा विश्विद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। और दोनों बार उन्होंने यूनिवर्सिटी टॉप की। उन्होंने सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा पास की और फिर इंटरेविएव नहीं दिया क्योंकि उनका मानना था कि अधिकारी बनकर आराम की ज़िंदगी जीने से बेहतर समाज की बेहतरी के लिए सामाजिक और राजनैतिक संघर्ष है। वर्मा जी का नाम नयी पीढ़ी के लिए अनजाना हो सकता है लेकिन वह उन लोगों में थे ,जिन्होंने सत्ता की नहीं ,विचारों की राजनीति की।


उन्होने 'अर्जक संघ' की स्थापना की। लगभग पचास साल तक राजनीति में सक्रिय रहे रामस्वरूप वर्मा को राजनीति का 'कबीर' कहा जाता है। वे डाॅ० राममनोहर लोहिया के निकट सहयोगी और उनके वैचारिक मित्र तथा 1967 में उत्तर प्रदेश सरकार के चर्चित वित्तमंत्री थे जिन्होंने उस समय 20 करोड़ लाभ का बजट पेश कर पूरे आर्थिक जगत को अचम्भित कर दिया। उनका सार्वजनिक जीवन सदैव निष्कलंक, निडर, निष्पक्ष और व्यापक जनहितों को समर्पित रहा। राजनीति में जो मर्यादाएं और मानदंण्ड उन्होंने स्थापित किये और जिन्हें उन्होंने स्वयं भी जिया उनके लिए वे सदैव आदरणीय और स्मरणीय रहेंगे।
रामस्वरूप वर्मा में राजनैतिक चेतना का संचार डा अम्बेडकर के उस भाषण से हुआ जिसे उन्होंने मद्रास के पार्क टाउन मैदान में 1944 में 'शेड‍यूल्ड कास्ट फेडरेशन' द्वारा आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में दिया था। इस भाषण में डा. आंबेडकर ने कहा था कि “तुम अपनी दीवारों पर जाकर लिख दो कि तुम्हें कल का शासक बनना है जिसे आते-जाते समय तुम्हें हमेशा याद रहे।” इसके अतिरिक्त उन पर डॉ आंबेडकर के उस भाषण का भी बहुत ही प्रभाव पड़ा जिसे उन्होंने 25 अप्रैल 1948 को बेगम हजरत महल पार्क में दिया था। उन्होंने कहा था कि ''जिस दिन अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग एक मंच पर होंगे उस दिन वे सरदार बल्लभ भाई पटेल और पंडित जवाहर लाल नेहरू का स्थान ग्रहण कर सकते हैं'' । उत्तरप्रदेश विधानसभा के वह लम्बे समय तक सदस्य रहे और चरण सिंह के मुख्यमंत्रित्व में वित्तमंत्री रहे। रामस्वरूप वर्मा एकमात्र उदाहरण हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में मुनाफे का बजट पेश किया।

उनके द्वारा स्थापित सामाजिक -सांस्कृतिक संस्था अर्जक संघ ने किसान -दस्तकार जातियों के बीच वैज्ञानिक -मानवतावादी नजरिया विकसित करने का प्रयास किया। बिहार के मशहूर नेता जगदेव प्रसाद ने उनसे ही प्रभावित होकर अपनी पिछड़ा वर्गीय राजनीति को ब्राह्मणवाद विरोधी राजनीति में तब्दील कर दिया।

हिंदी क्षेत्र में साठ के दशक में समाजवादियों के बीच जाति और वर्ण के सवाल गहराने लगे थे। लोहिया के नेतृत्व वाली संयुक्त समाजवादी पार्टी अर्थात संसोपा के नारे 'संसोपा ने बाँधी गांठ , पिछड़ा पावें सौ में साठ ' ने बड़े पैमाने पर पिछड़े वर्ग के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इससे जोड़ा था . लेकिन इनलोगों ने अनुभव किया कि संसोपा इसे लेकर गंभीर नहीं है। वर्मा जी ने राजनैतिक जीवन की एक घटना का खुलासा अपनी पुस्तक ”क्रान्ति क्यों और कैसे“ में किया है। वे लिखते हैं – “मंगल देव विशारद उत्तर प्रदेश राज्य के सार्वजनिक विभाग में मंत्री रहे। वे संसोपा में रहते हुए जब उन्हें अपने जन्म के जिला आजमगढ़ में एक भूमिहार के अन्य उच्चवर्णीय साथियों से अलग बैठाकर पत्तल के अभाव में एक फोड़ी गयी हण्डिया (छोटा मिट्टी का बर्तन जिसका मुंह फोड़कर चौड़ा पात्र बनाया गया था) चावल, दाल व सब्जी एक साथ दे दी गयी और पानी पीने के लिए एक कुल्हड़ के अभाव में दीवाली के दिये में पानी दिया गया। तब मंगल देव ऐसे विद्वान-सम्मानित व्यक्ति पर इस घृणा और तिरस्कार की कितनी चोट लगी होगी इसका अनुभव दरिद्र बाह्मण कैसे कर सकता है। भले ही भूमिहार पाखाना खाने वाली गाय का झूठा बर्तन माँज डालते हों, पवित्र मानते हों और उनके पालतू कुत्ते रोज बर्तनों में दूध रोटी खाते हों जिनके मांजने में उन्हें रंच मात्र भी संकोच नहीं होता है। लेकिन मंगलदेव के खाने में उनका धातु का बर्तन किसी काम का नहीं रह जाता। ऐसे तिरस्कार और घृणापूर्ण विचार पुनर्जन्म पर आधारित ब्राह्मणवाद के अलावा कहां से आ सकते हैं। यह दशा उत्तर प्रदेश राज्य के एक अन्त्यज मन्त्री की है तो फिर करोड़ों अन्त्यज मलेच्छ और शूद्र कितना तिरस्कार और घृणा पाते होंगे, इसका महज अनुमान लगाया जा सकता है। यह सही है मंगल देव विशारद इस अपमान को न सह सके और उन्होंने खाना नहीं खाया लेकिन इतनी तेजस्विता तो उँगली में गिने जाने वाले लोगों में ही है।”

आरक्षण और अवसर नहीं ,इस वर्णवादी -जातिवादी व्यवस्था को खत्म करने की जरुरत है . स्वयं लोहिया की गाँधी में आस्था थी .गाँधी वर्णवाद को स्वीकृति देते थे . इसी सवाल पर आंबेडकर गाँधी से दूर हुए थे . लोहिया गान्धीवादी थे, वर्मा जी आंबेडकरवादी। लोहिया के आर्दश मर्यादा पुरषोत्तम राम और मोहन दास करमचन्द गान्धी थे, माननीय रामस्वरूप वर्मा के आदर्श बुद्ध, फूले, आंबेडकर और पेरियार थे। डा. आंबेडकर ने कहा था, “असमानता की भावना, ब्राह्मणवाद को उखाड़ फेकों, वेदों और शास्त्रों में डाइनामाइट लगा दो।

अर्जक संघ के संस्थापक माननीय रामस्वरूप वर्मा ने अर्जक संघ के कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि पूरे देश में जहाँ जहाँ अर्जक संघ के कार्यकर्ता हैं वे बाबा साहब आंबेडकर के जन्म दिन को चेतना दिवस के रूप में मनाएं और मूल निवासी बहुजनों को जागरूक करने के लिए 14 अप्रैल 1978 से 30 अप्रैल तक पूरे महीने रामयण और मनुस्मृति का दहन करें। अर्जक संघ के कार्यकर्ताओं ने रामस्परूप वर्मा के आदेशों का पालन करते हुए रामायण और मनुस्मृति को घोषणा के साथ जलाया। रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद जैसे नेताओं ने गाँधीवादी लोहियावाद से विद्रोह किया और फुले -अम्बेडकरवाद के नजदीक आये . जीवन के आखिरी समय में कर्पूरी ठाकुर का भी गांधीवाद से मोहभंग हो गया था . वह भी फुले -अम्बेडकरवाद से जुड़ाव महसूस कर रहे थे . आनेवाली पीढ़ियां जब जागरूक होंगी ,इस राजनीतिक विकास का सम्यक अध्ययन प्रस्तुत करेंगी। जब शासक जातियों ने बाबा साहब द्वारा लिखित- जातिभेद का उच्छेद ओर धर्म परिवर्तन करें दोनो पुस्तकों को जब्त करने का आदेश जारी कर दिया तो शासनादेश के विरोध में रामस्वरूप वर्मा ने ललई सिंह यादव से हाईकोर्ट इलाहाबाद में याचिका दायर करवाय। ललई सिंह यादव ने विधिक लड़ाई जीतकर इलाहाबाद हाईकोर्ट से दोनों पुस्तकों को बहाल करवाया। इतना ही नहीं उन्होने उत्तर प्रदेश सरकार पर मानहानि का मुकदमा दायर कर उन्होनेे उत्तरप्रदेश सरकार से पूरे मुकदमें का हर्जा और खर्चा भी वसूल किया।

डा. लोहिया को हिन्दुत्व को खारिज किया जाये कतई बर्दाश्त नहीं था। इन्ही मुद्दों पर डा. लोहिया का वर्मा जी से भारी विवाद हुआ और यही विवाद डा. लोहिया की पार्टी से अलगाव का कारण बना।” वर्मा जी इस मुद्दे कितने सही थे, दूसरा बड़ा सबूत यही है लोहिया के रिश्ते तत्कालीन जनसंघ से बहुत गहरे हो गये थे। उनके हिन्दुत्व प्रेम का ही परिणाम था उन्होने जनसंघ प्रमुख दीनदयाल उपाध्याय के पक्ष में चुनाव प्रचार किया था और उनके महत्वपूर्ण साथी जार्ज फर्नांडीज जैसे लोग सीधे भारतीय जनता पार्टी में जुड़ गये थे। वर्मा जी ने नारा दिया था, ”मारेंगे, मर जायेंगे, हिन्दू नहीं कहलायेंगे।

रामस्वरूप वर्मा का मानना था सामाजिक चेतना से ही सामाजिक परिवर्तन होगा और सामाजिक परिवर्तन के बगैर राजनैतिक परिवर्तन सम्भव नहीं। अगर येन केन प्रकारेेण राजनैतिक परिवर्तन हो भी गया तो वह ज्यादा दिनों तक टिकने वाला नहीं होगा

राम स्वरुप वर्मा जी ने सामाजिक चेतना और जागृति पैदा करने के लिए 1 जून 1968 को सामाजिक संगठन ‘अर्जक संघ’ की स्थापना की। ,अर्जक संघ गांव गांव जाकर नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत करता था जिसने ब्राह्मणवाद की चूलें हिला दी थीं। कांग्रेस ने अर्जक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। उसके बाद गांवन में रत के अँधेरे में छिपकर नाटक होने लगे। अक्सर पुलिस और पीएसी आती थी पकड़ने के लिए। बहुत लोग गिरफ्तार हुए। धीरे धीरे कांग्रेस ने इसे ख़त्म कर दिया।

अर्जक संघ से ब्राह्मण कितना भयभीत हो गया था इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ब्राह्मणों ने नफरत से भरा हुआ नारा दिया था ''अर्जक संघी महा भंगी '' उनके अनुयायियों ने ही उत्तर प्रदेश विधान सभा में रामायण के पन्ने फाड़े। बाहर रामायण और मनुस्मति को जलाकर राख कर दिया।

वर्मा जी ने वित्त मंत्री रहते हुए भी कभी पद का दुरूपयोग नहीं किया ,व्यक्तिगत यात्रा वो रिक्शे पर करते थे परिवार का कोई दूसरा सदस्य सरकारी गाडी में नहीं बैठा कभी।

मुझे याद है जब वो आखिरी चुनाव हारे थे। गांव गांव वो पैदल ही घुमते थे उनके पैरों से खून रिस रहा था। वह आखिरी चुनाव था उनका।

उनके पोते को मैंने सायकिल से स्कूल जाते देखा। गांव में उनका घर वैसा ही सामान्य सा है जैसा सबका होता है।

आज अर्जक संघ और शोषित समाज दल के संस्थापक महामना रामस्वरूप वर्मा जी का जन्म दिन है। कभी ईमानदारी से जब भारत का इतिहास लिखा जायेगा तो राम स्वरूप वर्मा जी का नाम सामाजिक आन्दोलनकर्ता और सामाजिक बदलाव लाने वाले सबसे महत्वपूर्ण लोगों में शुमार होगा।

सामाजिक न्याय के पुरोधा एवं महान क्रन्तिकारी नेता को नमन।

Books by Mahamana Ramswaroop Verma:

1. Manavwadi Prashnotri (Humanist Question-Answers), Lucknow: Arjak Sangh, 1984.
2. Kranti Kyon Aur Kaise (Revolution: Why and How?), Lucknow: Arjak Sangh, 1989.
3. Manusmriti Rashtra Ka Kalank (Manusmriti a National Shame), Lucknow: Arjak Sangh, 1990.
4. Niradar Kaise Mite? (How to remove Disrespect?) Lucknow: Arjak Sangh, 1993.
5. Achooton Ki Samasya Aur Samadhan (The Problem of Untouchables and its Solution) Lucknow: Arjak Sangh, 1984.




KCI टीम ऐसे महामानव को उनकी जयंती पर नमन करती है |

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