अपना दल का गठन कर कमेरों, किसानो, मजदूरों, वंचितों की लड़ाई मजबूती से लड़ते रहे डॉ सोनेलाल पटेल
मूलत: फर्रुखाबाद के थे डॉ. सोनेलाल-
बोधिसत्व डा० सोने लाल पटेल का जन्म २ जुलाई 1950 को फर्रुखाबाद जिले के ग्राम बबूलहाई तहसील छिबरामऊ में हुआ था। पिता गोविन्द प्रसाद पटेल व मां रानी देवी पटेल की संतानों में आठ भाइयों में डॉ. सोनेलाल पटेल सबसे छोटे थे। शिक्षा पूरी करने के बाद आपने सेना में सेंकेंड लेफ्टीनेंट के पद पर नौकरी ज्वाइन की लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा। वे समाज की प्रगति के लिए चिंतित रहते थे इस कारण सेना की नौकरी छोड़कर खुद का बिजनेस प्रारम्भ किया।
डा0 सोनेलाल पटेल समाज की सेवा में लगे थे। डॉ. पटेल इतने उदार प्रवृत्ति के थे कि जिन्होंने प्रदेश ही नही देश के विभिन्न भागों में राष्ट्र निर्माता सरदार पटेल के नाम से धर्मशालाओं के निमार्ण में सक्रिय योगदान किया। वह 1987 से लेकर 1996 तक अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद 1991से 1998 तक अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष व महासचिव रहे। फिर 1998 से 2000 तक अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत से समाज की सेवा की। बसपा को आगे बढ़ाने में भी उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। वह बसपा के प्रदेश महासचिव भी रहे।
बुद्धिजीवी डॉ. पटेल को काशीराम की बात कि कुर्मी समाज नेतृत्व नही कर सकता है दिल को लग गई। उस वक्त वह कुर्मी क्षत्रिय महासभा प्रदेश अध्यक्ष थे। विधायक रामदेव पटेल कुर्मी क्षत्रिय महासभा के महासचिव और बलिहारी पटेल संरक्षक थे। तीनो लोग बसपा के साथ लगकर राजनीति कर रहे थे। कुर्मी समाज में राजनैतिक चेतना जागृत करने के लिए समूचे प्रदेश में रथ निकाल कर रैली करने की योजना बनी।
30 अक्टूबर 1994 को फैसला हुआ कि कुर्मी स्वाभिमान योजना रथ यात्रा के माध्यम से प्रदेश के 38 जिलों में भ्रमण करेगी। यह रथयात्रा जब 19 नवम्बर 1994 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क पहुंची तो उस रैली के मार्फत कुर्मी समाज के लोगों ने देश के राजनैतिक दलों को अपनी ताकत का एहसास कराया। इससे विभिन्न राजनैतिक दलों मे खलबली मच गई। इस रैली के मुख्य अतिथि डॉ. सोनेलाल पटेल थे। डॉ. पटेल ने एहसास करा दिया कि प्रदेश में कुर्मी समाज किसी से पीछे नही है। बल्कि स्वयं आगे चलने में सक्षम है। इसके करीब नौ महीने बाद विचार मंथन के बाद पुनः कुर्मी स्वाभिमान राजनैतिक चेतना रथ यात्रा के माध्यम से लगभग 47 दिन का कार्यक्रम तय किया गया जो 17 सितम्बर 1995 को कानपुर से शुरू हुआ। इसमें रथ यात्रा प्रदेश के अधिकांश जिलों में जनसभा के माध्यम से कुर्मी समाज को ललकारा गया और राजनैतिक सोच पैदा की गई। इसका समापन 31 अक्टूबर 1995 को पटेल जयन्ती के दिन खीरी जनपद से किया गया। लेकिन लखनऊ जा रही रथ यात्रा को सीतापुर मे रोक दिया गया।
30 अक्टूबर 1994 को फैसला हुआ कि कुर्मी स्वाभिमान योजना रथ यात्रा के माध्यम से प्रदेश के 38 जिलों में भ्रमण करेगी। यह रथयात्रा जब 19 नवम्बर 1994 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क पहुंची तो उस रैली के मार्फत कुर्मी समाज के लोगों ने देश के राजनैतिक दलों को अपनी ताकत का एहसास कराया। इससे विभिन्न राजनैतिक दलों मे खलबली मच गई। इस रैली के मुख्य अतिथि डॉ. सोनेलाल पटेल थे। डॉ. पटेल ने एहसास करा दिया कि प्रदेश में कुर्मी समाज किसी से पीछे नही है। बल्कि स्वयं आगे चलने में सक्षम है। इसके करीब नौ महीने बाद विचार मंथन के बाद पुनः कुर्मी स्वाभिमान राजनैतिक चेतना रथ यात्रा के माध्यम से लगभग 47 दिन का कार्यक्रम तय किया गया जो 17 सितम्बर 1995 को कानपुर से शुरू हुआ। इसमें रथ यात्रा प्रदेश के अधिकांश जिलों में जनसभा के माध्यम से कुर्मी समाज को ललकारा गया और राजनैतिक सोच पैदा की गई। इसका समापन 31 अक्टूबर 1995 को पटेल जयन्ती के दिन खीरी जनपद से किया गया। लेकिन लखनऊ जा रही रथ यात्रा को सीतापुर मे रोक दिया गया।
चार नवंबर 1995 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में कुर्मी स्वाभिमान राजनैतिक चेतना रैली प्रस्तावित थी लेकिन तत्कालीन शासन प्रशासन ने कुर्मी रैली के लिए बेगन हजरत महल पार्क नहीं दिया। ऐसे में बारादरी के मैदान में रैली की हुई। जानकार बताते हैं कि वह अब तक कि सबसे बड़ी जातीय रैली थी। इसी रैली में अपना दल नामक राजनैतिक पार्टी का गठन किया गया।
इस रैली के मुख्य अतिथि डॉ. सोनेलाल पटेल थे। अपना दल की घोषणा बलिहारी पटेल ने की जो संचालन कर रहे थे। दल की घोषणा होते ही जिंदाबाद के गगन भेदी नारे लगे और उपस्थित लाखों कार्यकर्ताओं ने खुशी का इजहार किया। फिर 11 व 12 नवम्बर 1995 को बेगम हजरत महल पार्क में अपना दल का खुला अधिवेशन हुआ जिसमें डॉ पटेल ने राष्ट्रीय अध्यक्ष और रामदेव पटेल प्रदेश के संयोजक तथा बलिहारी पटेल दल के संरक्षक और हाई पावर कमेटी के चेयरमैन बनाए गए। इसके बाद आम जनमानस में दल का प्रसार तेजी से हुआ। पार्टी का प्रचार प्रसार उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, दिल्ली, महाराष्ट्र तक फैल गया। डॉ पटेल अविरल प्रवाह की तरह राजनैतिक क्षितिज पर आगे बढ़ते चलते गए।
लखनऊ की ऐतिहासिक कुर्मी स्वाभिमान रैली |
विश्व हिन्दू परिषद की तर्ज पर डॉ. सोनेलाल पटेल ने विश्व बौद्ध परिषद की स्थापना की। जिसका प्रथम दो दिवसीय अधिवेशन 14-15 फरवरी 1999 में हुआ। इसी अधिवेशन के दौरान डॉ. सोनेलाल पटेल ने लाखों किसान कमेरों के साथ हिन्दू धर्म को फैजाबाद के अयोध्या में सरयू तट पर श्रीलंका के राजदूत के समक्ष त्याग दिया और भंते प्रज्ञानन्द से बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर बोधिसत्व डा0 सोनेलाल पटेल कहलाए। उसी दिन से डां0 सोनेलाल पटेल कट्टर जातिवादी हिन्दू संगठनों की आँखों की किरकिरी बन गये ।
इलाहाबाद में आयोजित रैली में बीजेपी सरकार की जानलेवा साजिश-
1999 में डॉ. पटेल और उनके समर्थक पीडी टंडन पार्क इलाहाबाद में आयोजित नामाांकन रैली में इकट्ठे हुए। समर्थकों की भारी भीड़ को देखकर तत्कालीन बीजेपी सरकार के ताकतवर सांसद मुरली मनोहर जोशी के इशारे पर कुर्मी समाज के पुरोधा डॉ. सोनेलाल पटेल एवं वहां उपस्थित जन मानस पर लाठी चार्ज करवाया दिया गया।
एक राष्ट्रीय कद के नेता को इस लाठीचार्ज में इतना मारा गया कि उनके शरीर में जगह-जगह फ्रेक्टर हो गए। इतना ही नहीं इसके बाद डॉ. सोनेलाल पटेल को अन्य समर्थकों समेत घायल अवस्था में ही एक महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। उस समय उनके साथ जेल गए मान सिंह पटेल बताते हैं कि बीजेपी सरकार की साजिश उस हमले में डाक्टर साहब को जान से मरवाने की थी लेकिन किसी तरह समर्थकों ने उनके ऊपर लेट कर उनकी जान बचाई।
डॉ. सोनेलाल पटेल के अपना दल के सिर्फ कुर्मी पदाधिकारी के लिए ये आवश्यक था कि वो अपने नाम के आगे पटेल लगाए भले ही उसका टाइटल कटियार, सचान, गंगवार, चौधरी, वर्मा, निरंजन, उमराव, उत्तम, कनौजिया हो लेकिन डॉ. साहब का साफ कहना था कि समाज की जागरूकता के लिए पूरे प्रदेश के कुर्मियों को पटेल टाइटल लगाना चाहिए।
कुर्मी समाज व पिछड़ों के पुरोधा बोधिसत्व डॉ. सोनेलाल पटेल इस घटना से विचलित नही हुए और उन्होंने अपना सामाजिक व राजनैतिक आांदोलन जारी। लेकिन प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था 17 अक्टूबर 2009 को कानपुर में दिपावली के दिन डॉ. सोनेलाल पटेल का निधन एक कार दुर्घटना में हो गया।
डॉ. साहब हमारे बीच नहीं है लेकिन पिछड़ों, दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष का रास्ता दिखा गए हैं |
2012 में पहली बार जीता कोई परिवार का सदस्य
अपना दल का खाता वैसे तो 2007 में ही खुल गया था, लेकिन डॉ. सोनेलाल पटेल खुद चुनाव हार गए थे। उनकी मौत के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल वाराणसी के रोहनिया विधानसभा की विधायक बनीं। उसके बाद अनुप्रिया 2014 में मिर्जापुर की सांसद बनीं | आज उनके कारवां को उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल आगे ले जा रही है |
कुर्मी समाज के समर्थन के लिए व अनुप्रिया जी के जनाधार को देखते हुए भाजपा द्वारा 2016 को केंद्र सरकार में स्वास्थ्य व् परिवार कल्याण राज्यमंत्री बनाया गया |
अनुप्रिया संसद में गरीबों, मजदूरों व वंचितों की आवाज बुलंदी से उठाने के लिए मशहूर है - कुर्मी समाज को पुनः डॉ सोनेलाल जी के संघर्ष की याद आने लगी है | आज अनुप्रिया जी की सर्वसमाज मे स्वीकार्यता व उनकी सकारात्मक व स्वच्छ राजनिति करने का तरीका, बेबाक अंदाज, बेदाग क्षवि जनता व् समाज को अत्यंत पसंद आ रही है | उनमे शक्तिशाली नेतृत्व करने की प्रतिभा और क्षमता दोनों है ।
2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में उनकी सूझबूझ से पार्टी के 9 विधायक चुनकर विधानसभा पहुचे | बाद में एक एम.एल.सी. भी निर्वाचित हुए |
2019 लोकसभा चुनाव में पुनः अपना दल के 2 सांसद चुनकर देश की संसद में पहुचे |
जिसमे से मिर्ज़ापुर लोकसभा से अनुप्रिया फिर से बड़े अंतर से जीतकर संसद पहुची |परन्तु बी.जे.पी. को अनुप्रिया जी की चौतरफ़ा स्वीकार्यता बर्दास्त नही हो रही थी और इसीलिए नई मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री नही बनाया गया | परन्तु कुर्मी समाज आज राजनीतिक रूप से जागरूक हो चूका है ।
देखना यह है की कमेरों के मसीहा के कारवां डॉ. साहब के मिशन को उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल कितना आगे ले जा पाएंगी ? |
दुबारा सांसद बनाने के बाद पिता का आशीर्वाद लेती उनकी लाडली व जनप्रिय नेता अनुप्रिया |
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